ऊपर नीला, स्वच्छ आकाश,
जैसे किसी चित्रकार ने अभी-अभी अपनी कैनवास पोती हो!
जैसे माँ के आँचल ने मुझे पूरा ढक लिया हो..
साफ़, स्वच्छ, जैसे किसी बालक का मन हो.
नीचे चमकीले, सुनहरे बदल,
सूरज की किरणों को परावर्तित करती,
अधूरे circles के टुकडें
जैसे किसी बालक ने bore होकर पुरे नहीं किये|
एक-एक टुकड़ा एक किस्सा है, एक कल्पना है
उस चित्रकार की..
और बीच में यह धातु का टुकड़ा,
मानव का चंचल प्रयास,
भर रहा हो जैसे अपनी मुट्ठी में आकाश!
उस धरती से हजारों गज ऊपर,
जहाँ छल है, द्वेष है,
सीमाएं हैं..
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