जी करता है कि लिखता जाऊँ,
लिखता जाऊं, कहता जाऊं;
वो सारी बातें जो तुमने कही,
या कहते कहते ठिठक गयी|
विषयों की भी कमी नहीं है,
ग्रन्थ लिख सकता हूँ-
उस अंतरिक्ष में जाते यान पर,
सड़क किनारे कुचले श्वान पर,
आज फिर से टूटे एक अरमान पर;
थमती ठिठकती हर घ्राण पर।
शब्द भी हैं अगणित-
कुछ शब्दकोष में बंधे हुए
कुछ स्वछन्द हवा में उड़ते
कुछ इतराते, कुछ चहकते,
कुछ सहमे, कुछ सिसकते।
पर इस सूखे निर्झर से जीवन में भाव कहाँ से लाऊँ ?
जी तो करता है की आज फिर से मैं लिखता जाऊं!